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periods me adrak ke fayde

Dr. Pranati Narayan

06 Sep, 2024

Periods Me Adrak Ke Fayde

अधिकतर महिलाओं को पीरियड्स के दिनों में पेट के निचले भाग में पीड़ा अनुभव होती है, जिसे पीरियड क्रैम्प्स भी कहा जाता है। ये पीड़ा कभी कभी हल्की अथवा कभी कभी असेहनीय होती है, ऐसी महिलाएं पीड़ा को कम करने के लिए हर भरसक प्रयास करती है। इस पीड़ा से निजात पाने के लिए आप अदरक का भी प्रसोग कर सकते है। आइए जानें क्यों और कैसे? **पीरियड्स में पेट के निचले हिस्से में दर्द क्यों होता हैं?** पीरियड्स के दौरान एक प्रोस्टाग्लैंडिन नामक स्राव स्रावित होता है, जिससे बच्चेदानी ( यूटरस) की मांसपेशियों सिकुड़ती है ( कॉन्ट्रैक्ट) करती है। इसके परिणाम स्वरूप सूजन और दर्द होता है। कभी कभी यह दर्द फैल कर पीठ के निचली भाग में भी होने लगता है और पेट फूलना, सिर दर्द, उपकाई, उल्टी और कभी कभी अतिसार ( डायरिया) भी हो जाता है। **प्रेगनेंसी में अदरक के फायदे** अदरक में जिंजरऑल नामक पदार्थ होता है जो एंटीइंफ्लेमेटरी एवं एंटीओक्सीडेंट गुण युक्त होता है। यह पीरियड्स में दर्द से राहत दिला कर ऊर्जा भी प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त यदि आपके पीरियड्स इरेगुलर है तो भी आप अदरक को अपने खाने पीने में शामिल कर सकती हैं। **अदरक को कितनी मात्रा में सेवन करना चाहिए?** यदि आप अदरक का सेवन करते हैं तो ध्यान रखें की अदरक का सेवन दिन भर में 25 ग्राम से अधिक न हों। हर चीज अधिकांश मात्रा में हानिकारक होती है और अधिक मात्रा में अदरक का सेवन करने से बवासीर ( पाइल्स) की परेशानी हो सकती है। **अदरक का सेवन किस प्रकार से किया जा सकता है?** अदरक का सेवन आप निम्न रूप में कर सकते हैं – - अदरक की चाय - अदरक को पानी में उबाल कर पिए - अदरक का रस निचोड़ कर थोड़े से पानी में मिला कर पी सकते है। - इसके अतिरिक्त अदरक के रस को आप मधु में भी मिला कर पी सकते है। परंतु मधु का सेवन कभी भी उबाल कर न करें।
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Pregnancy me bleeding

Dr. Pranati Narayan

03 Apr, 2023

Pregnancy Me Bleeding

गर्भावस्था के दौरान, कभी कभी कुछ महिलाओ में रक्त के धब्बे या फिर रक्त श्रवित (ब्लीडिंग) होता है। परंतु रक्तस्राव (ब्लीडिंग) एवं खून के धब्बों (स्पॉटिंग) में अंतर होता है। जब योनि से हल्के रक्त का स्राव होता है तो उसको स्पॉटिंग या खून के धब्बे आना कहते है। ये उसी प्रकार के खून के धब्बों की तरह होता है जो महावारी (पीरियड्स) के शुरुवात एवं अंत में होता है। इसका रंग भूरा, हल्का भूरा या लाल हो सकता है तथा इसका प्रवाह कम होता है। वही दूसरी ओर रक्तस्राव में खून की मात्रा अधिक होती है और इस दौरान आपको सैनिटरी पैड की आवश्कता पड़ सकती है। **गर्भावस्था में ब्लीडिंग होने के सामान्य कारण** गर्भावस्था के दौरान निम्न परिस्थितियों में खून के धब्बे या रक्तस्रावहो सकता है – - गर्भावस्था के शुरुआती दौर में हल्की फुल्की ब्लीडिंग होना सामान्य है और यह लगभग चार में से एक महिला में होती हैं। इसका कारण होता है इंप्लांटेशन। जब भ्रुण बढ़ता है तो वह कोख की दीवार में प्रत्यारोपित ( ट्रांसप्लांट) होता है, यही इंप्लांटेशन कहलाता है। - स्पॉटिंग, बढ़ते हुए प्लेसेंटा ( अपरा) के कारण भी हो सकती है। 6 सप्ताह के गर्भधारण के पश्चात अपरा खुद ही गर्भावस्था के हार्मोन का निर्माण करने लगती है, जिसके कारण हल्का रक्तस्राव हो सकता है। - यदि आपने किसी प्रजनन उपचार कैसे आई वि इफ के जरिए गर्भधारण किया है तो आपको हल्के खून के धब्बे दिख सकते हैं। - इन कारणों के अतरिक्त गर्भावस्था के दौरान शरीर में कई अन्य प्रकार के बदलाव आते हैं जिसके कारण स्पॉटिंग हो सकती है। जैसे - योनि या गर्भाशय ग्रीवा में इन्फेक्शन होना, सर्वाइकल पोलिप, यूटराइन फाइब्रॉयड ( गर्भाशय के अंदर बनने वाले मांसपेशियों का ट्यूमर), गर्भावस्था के हार्मोन से ग्रीवा की सतह में बदलाव होने से जलन और असहजता के कारण रक्तस्राव हो सकता है। **कब प्रेगनेंसी में ब्लीडिंग होना हानिकारक है?** उपर्युक्त समान्य कारणों के अतिरिक्त इन परिस्थितियों में रक्त स्राव हो सकता है जो की आपके स्वास्थ के लिए हानिकारक हो सकता है। कुछ कारण निम्न हैं – - गर्भपात – कभी कभी गर्भावस्था की शुरुवात में भ्रुण का विकास सही ढंग से नहीं हो पाता, जिससे दुभाग्यवश गर्भपात हो जाता है। - एक्टोपिक प्रेगनेंसी ( अस्थानिक गर्भावस्था) – इस अवस्था में निषेतचित ( फर्टिलाइज्ड)डिंब गर्भाशय के अतिरिक्त आस पास अन्य जगह जैसे फैलोपियन ट्यूब में प्रत्यारोपित हो जाता है। ऐसे में रक्तस्राव होने लगता है। - मोलर गर्भावस्था – इसमें भी रक्तस्राव हो सकता है। इसमें गलत गुणसूत्रों ( क्रोमोसोम्स) के मिलने की वजह से भ्रुण का विकास नहीं हो पाता है। - वेनिशिंग ट्विन – कभी कभी जुड़वा बच्चे होने पर भी स्पोर्टिंग हो सकती है। ऐसा अक्सर तब होता है जब एक शिशु का विकास रुक जाता हैं और अंत में वह पूरी तरह गायब हो जाता है, इसको वेनिशिंग ट्विन कहते है। - कभी कभी जब प्रसव समय से पहले होने लगता है तब भी ब्लीडिंग हो सकती है। - इसके अतिरिक्त पेट पर आघात लगने से भी रक्त स्राव हो सकता है। सभी स्तिथियों में आपको एक बार स्त्री प्रसूति रोग विषेशज्ञ से अवश्य परामर्श लेना चाहिए। चिकत्सक देख समझ कर एवं जांचें करा कर आपको सही सलाह देते हैं। ऐसी परिस्थिति में आपको लापरवाही बिलकुल भी नहीं करनी चाहिए और खुद से अपना इलाज या घरुलू नुस्खे कदापि नहीं अपनाने चाहिए।
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कुत्ते के काटने पर क्या करे? घरेलु उपचार एवं इलाज।

Dr. Pranati Narayan

11 May, 2023

कुत्ते के काटने पर क्या करे? घरेलु उपचार एवं इलाज।

आजकल अधिकतर घरों में कोई न कोई पालतू जानवर होता है। किसी के पास बिल्ली, किसी के पास कछुआ तो किसी के पास कुत्ता पाला होता है। ये जानवर बेशक बहुत ही प्यारे होते है परन्तु इनसे बीमारियां होने का भी खतरा होता है। ऐसा अक्सर सुनने में आता है की सड़क पर चलते समय किसी कुत्ते ने काट लिया या खरोच मार दी। या फिर बंदर ने हमला कर दिया। दुनिया भर में कुत्ते से काटे जाने के लगभग 45 लाख केस हर साल आते हैं। इन जानवरों के काटने को आपको समान्य नहीं समझना चाहीए बल्कि इसका तुरंत उपचार करना चाहिए। यदि तुरंत प्राथमिक उपचार न किया जाए तो आप संक्रमित हो सकतें है और आपको रेबीज़ जैसी बीमारी या कुछ अन्य बीमारियां भी हो सकती है। हर साल रेबीज़ के कारण भारत में 18000 से ऊपर मृत्यु होती हैं। _**कुत्ते के काटने से क्या होता है?**_ यदि आपको कुत्ते ने काटा है या खरोच मारी है तो आपको असहनीय पीड़ा होने के साथ साथ कई कठिनाइयां हो सकती हैं। कुत्ते की लार में एक बैक्टेरिया पाता जाता है और यदि वो काट लेता है तो सही इलाज न करने पर वो बैक्टेरिया आपके शरीर में भी पहुंच कर संक्रमित कर सकता है। इसके इलावा आपके शरीर में कुछ अन्य लक्षण भी दिखाई दे सकते है। ये लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि कुत्ते ने कितनी गहराई से कटा हैं। _**रेबीज़ क्या हैं? क्या हर कुत्ते के काटने से रेबीज़ हो सकती है?**_ रेबीज़ एक ऐसा रोग है जिसका कारण वायरस होते हैं। इस रोग का प्रभाव केंद्रीय तंत्रिका पर होता है एवं इसकी चिकित्सा ना करने पर जान भी जा सकती है। यदि आप ये सोच रहे है की हर कुत्ते के काटने से रेबीज़ हो सकती है, तो आप गलत हैं। रेबीज़ केवल उन कुत्तों के काटने से ही होती है जिनको रेबीज़ है या फिर उनको रेबीज़ का टीका नहीं लगा है। कुत्ते के काटने पर तुरंत इलाज करवाने का कारण यही है की आप हमेशा ये नही जान सकते की किस कुत्ते को रेबीज़ का टीका लगा है अथवा किसको नही। _**कुत्ते के काटने पर क्या प्राथमिक उपचार करें?**_ यदि आपको या आपके किसी भी जाने वाले को कुत्ते ने काटा है तो प्राथमिक उपचार के लिए आप निम्नलिखित चीज़े कर सकते हैं - - घाव को डिटोल से पोंछे और साबुन लगा कर चलते पानी में 5-1० मिनट तक धोये। - शरीर का जो हिस्सा प्रभावित है उसे थोड़ा ऊपर उठा कर रखें। - यदि कोई एंटीबायोटिक क्रीम है तो उसको घाव पर लगा दे। - घाव की बैंडेज करे और डॉक्टर से परामर्श करें। सभी कुत्ते के काटने के घाव, यहां तक कि मामूली भी, संक्रमण के लक्षणों के लिए निगरानी की जानी चाहिए जब तक कि वे पूरी तरह से ठीक न हो जाएं। _**कुत्ते के काटने से क्या जटिलताएं हो सकती हैं?**_ अक्सर कुत्ते बहुत गंभीर रूप से नहीं काटते हैं और अधिकतर इसका शिकार बच्चे होते हैं। कुत्ते के काटने पर कुछ संक्रमण या जटिलताएं हो सकती हैं। जैसे - यदि किसी कुत्ते ने आपको काटा है और आपका मांस निकल गया या उस कुत्ते के दांत आपको ज्यादा गहराई में लग गए है, तो संभव है की आपकी त्वचा पर उसके निशान छूट जाए। - रेबीज़ - जो प्रभावित क्षेत्र होता है वहा आस पास सूजन आ सकती है। ऐसे में बुखार आना, ह्रदय गति तेज होना आदि लक्षण दिखते है। अक्सर ये सूजन एंटीबॉयटिक्स से सही हो जाती है। किंतु यदि संक्रमण फैलता है तो सेप्सिस होने का खतरा होता है। - मेनिनजाइटिस _**रेबीज के लक्षण**_ यह रोग शुरुवात में फ्लू जैसे लक्षण प्रकट करता है। बुखार, झुनझुनी, मांसपेशियों में कमजोरी आदि। रेबीज़ केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है और यह दो प्रकार के रोग विकसित कर सकता है। <u>उग्र रेबीज़</u> इसमें ये लक्षण दिखते हैं - - व्याकुलता और अशांति - अनिद्रा - चिंता - उलझन - लार का अधिक मात्रा में गिरना - पानी से डर लगना - निगलने में कठिनाई होना <u>पैरालिटिक रेबीज़</u> इसको होने में थोड़ा समय लगता है, परंतु यह भी उतना ही गंभीर होता है। धीमे धीमे संक्रमित व्यक्ति पैरालाइज हो जाता है और वह कोमा में भी जा सकता हैं। इस स्थिति में उसकी मृत्यु भी संभव है। _**कुत्ते के काटने के बाद कब और कितने इंजेक्शन लगवाए?**_ रेबीज़ से बचने के लिए इंजेक्शन दो प्रकार से लगते हैं। कुछ लोग सावधानी के तौर पर ही टिका लगवा लेते हैं जिससे वो कुत्तों के काटने से होने वाली बीमारी से बच सकें। इसको प्री एक्सपोजर वैक्सीनेशन कहा जाता है। डॉक्टर के अनुसार यह टीका उन लोगो को अवश्य लगवाना चाहिए जिनके घर में कुत्ते पले हों या फिर वो कुत्ता रखनेवाले हो। अगर आप ऐसी जगह जा रहे हो जहां रेबीज़ के केस अधिक हो या बहुत सारे आवारा कुत्ते हों, तब भी आपको प्री एक्सपोजर वैक्सीनेशन कराना चाहिए । यह टीकाकरण उन लोगों के लिए है जिनको उस कुत्ते ने काटा है जिसके रेबीज़ का इंजेक्शन लगा हुआ है। ऐसे में 3 इंजेक्शन लगते हैं। पहला इंजेक्शन कुत्ते के काटने के बाद उसी दिन 24 घण्टे के अंदर लगता है जिसदिन कुत्ते ने काटा हो। दूसरा इंजेक्शन तीसरे दिन लगता है। और तीसरा इंजेक्शन कुत्ते के काटने के 7 दिन बाद लगता है। ( प्री एक्सपोजर टीकाकरण) पोस्ट एक्सपोजर वैक्सीनेशन– इसमें टीके की 5 खुराक लगती हैं। तीसरी खुराक प्री एक्सपोजर वैक्सीनेशन के समान हैं । चौथी खुराक़ चौदवे दिन लगती है और पांचवीं खुराक 21 या 28 दिन पर लगती है। जब रेबीज़ का पहला इंजेक्शन लगता है उसी के साथ टेटनस का इंजेक्शन भी लगाया जाता है। इसका कारण यह है कि टेटनस किसी भी संक्रमित घाव से हो सकता है। जब कुत्ता काटता या खरोचता है जो घाव होता है और वह घाव कुत्ते की लार या उसके पंजों से संक्रमित होता है। यही कारण है की आपको रेबीज़ के साथ टेटनस का इंजेक्शन भी पहले दिन लगता है। अंततः आपको ये बात ध्यान में रखनी चाहिए कि कुत्ते के काटने पर टीका ज़रूर लगवाना चाहिए भले ही आपके पालतू कुत्ते ने आपको काटा हो। ऐसा करने पर आप खुद को बीमारियो से बचा सकते हैं। यदि आपके आस पास के लोग इस बात से जागरूक नहीं हैं की कुत्ते के काटने पर इंजेक्शन लगवाना चाहिए तो आपको इंसानियत के नाते उनको भी जागरूक करना चाहिए और उनका टीकाकरण करवाना चाहिए।
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periods me alcohol lena chahiye

Dr. Pranati Narayan

11 May, 2023

Periods Me Alcohol Lena Chahiye

शराब का सेवन करना कभी भी सेहत के लिए अच्छा नहीं माना गया है। अधिक मात्रा में शराब का सेवन करने से आपके शरीर पर बुरा असर पड़ता है तथा आप किसी न किसी प्रकार के रोग से भी ग्रस्त हो सकती हैं। वहीं पीरियड्स के दिनों में भी बहुत अधिक मात्रा में शराब पीने से बुरा असर पड़ता है। आइए जानते है शराब पीने से किन परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है – - पीरियड्स के दौरान शराब पीने से आपको निर्जलीयकारण ( डिहाइड्रेशन) की समस्या हो सकती है। इसी कारण से आपके पेट में मरोड़ भी और बढ़ सकती है। - शराब पीने से हार्मोन्स पर असर पड़ता है। शराब के सेवन से एस्ट्रोजन और टेस्टोस्टेरॉन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। शराब का सेवन करने से इन दोनो हार्मोन्स का स्तर कुछ देर के लिए बढ़ जाता है। परिणाम स्वरूप यह आपकी मेंस्ट्रुअल साइकिल ( मासिक धर्म चक्र) को प्रभावित करता है। - इसके अतिरिक्त शराब का सेवन करने आपको थकान और सुस्ती भी अधिक मेहसूस होगी जो कि आपका मूड खराब होने का कारण बन सकती है। आपको अधिक चिड़चिड़ाहट मेहसूस हो सकती है। अर्थात शराब पीने से पीएमएस ( प्री मेंसट्रूअल सिंड्रोम) के लक्षण बिगड़ सकते हैं। - शराब का सेवन करने से आपके शरीर में उपास्थिक पोषक पदार्थ जैसे मैंगनेशियम आदि पर भी असर पड़ता है। शराब का सेवन करने से मैंगनेशियम का स्तर कम हो सकता है जिसके फलस्वरूप आपकी ब्लड शुगर भी कम हो सकती है। इससे आपको चक्कर, कमजोरी आदि मेहसूस होगी। - शराब अन्य अंगो जैसे लीवर आदि को भी नुकसान पहुंचाती है। इस कारण से आपके पूरे शरीर की क्रिया उचित ढंग से नहीं हो पाती है एवं यह हार्मोस पर प्रभाव डालती है। इस कारण से आपको मासिक धर्म चक्र में परेशानियां आ सकती है। _निष्कर्ष क्या है?_ उपर्युक्त लेख से आप यह स्वतः समझ गए होने की पीरियड्स के दौरान शराब का सेवन करना सही नहीं है। इसीलिए पीरियड्स के दौरान शराब का सेवन कदापि न करें। शराब का सेवन करने से आपके मासिक धर्म चक्र पर प्रभाव पड़ सकता है जिससे आपको पीरियड्स की अनियमितता की परेशानी का भी सामना करना पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त शराब का सेवन करने से तनाव और अवसाद जैसी मानसिक उलझने भी जन्म लेती हैं और यह भी आपके मासिक धर्म चक्र को प्रभावित करती हैं।
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pregnancy me delivery ke lakshan

Dr. Pranati Narayan

15 Jan, 2025

Pregnancy Me Delivery Ke Lakshan

जैसे जैसे डिलीवरी की डेट नजदीक आती जाती है वैसे ही आपके भी मन में ये भी प्रश्न आते हैं की आपको कैसे ज्ञात होगा की कौन से लक्षण प्रसव के शुरुवाती लक्षण है। कई बार ये समझना मुश्किल हो जाता है की प्रसव पीड़ा शुरू हो गई अथवा नहीं। जो महिलाएं पहली बार मां बनती हैं उन्हें अन्य से अधिक घबराहट के अतिरिक्त प्रसव को लेकर कई प्रश्न होते हैं। आइए इस लेख के मध्यम से जानें की प्रसव के क्या लक्षण हैं। **प्रसव क्या होता है?** जिस प्रक्रिया के द्वारा आपके गर्भ में पल रहा शिशु तथा प्रेसेंटा योनि के मध्यम से बाहर निकलता है, वह प्रक्रिया प्रसव कहलाती है। **यदि आपको नियमित दर्द भरे संकुचन महसूस हो रहे हैं, जो की समय के साथ अधिक प्रबल, पहले की अपेक्षा अधिक समय तक और बार बार महसूस हो रहे हैं; तो यह प्रसव शुरू होने के सबसे प्रमुख लक्षण है।** शिशु को गर्भ से बहार निकलने के परिणाम स्वरूप ही यह संकुचन होते हैं। जब गर्भस्थ शिशु बाहरी दुनिया में प्रवेश करने के लिए नीचे की ओर खिसकता है तो ग्रीवा, योनि, अन्य अंगो तथा मांसपेशियों में भी दवाब और खिंचाव होता है, इसी कारणवश अलग अलग प्रबलता की पीड़ा मेहसूस होती है। प्रसव पीड़ा अन्य सभी पीड़ाओ से अलग होती है। यह हर महिला में भिन्न होती है। जरूरी नहीं है की जैसी पीड़ा आपको पहली बार मां बनने में मेहसूस हुई हो वैसे ही आपको अगली बार मां बनने में भी महसूस हो। **प्रसव पीड़ा इस बात का संदेश होता है कि आपका शरीर बच्चे को जन्म देने के लिए कार्यरत हो गया है।** इसके अतिरिक्त कुछ अन्य लक्षण भी प्रसव का संकेत देते हैं जैसे – - नीचे की ओर पीठ तथा पेट में लगातार पीड़ा महसूस करना। - पेट में पीरियड्स ( महावारी) के समान ऐंठन महसूस करना। - पानी की थैली फटना (**इस स्तिथि में आपको तुरंत स्त्री प्रसूति विशेषज्ञ के पास जाना चाहिए**)। - म्यूकस प्लग का हट जाना। म्यूकस प्लग गर्भावस्था के दौरान ग्रीवा को बंद रखता है। इसके हटने से चिपचिपा जेली के समान म्यूकस स्रावित होता है जो कभी कभी रक्त युक्त भी हो सकता है। **जल्दी प्रसव शुरू होने के शुरुवाती लक्षण** यदि आपकी ड्यू डेट (प्रसव की देय तिथि) कुछ दिन, कुछ हफ्ते पास है तो आपको ऐसे लक्षण मेहसूस हो सकते है जो जल्दी ही प्रसव शुरू होने के सांकेतिक हों। ये लक्षण इस बात का संकेत देते हैं की आपका शरीर खुद को प्रसव के लिए तैयार कर रहा है। आप ऐसे में निम्न चीज़े महसूस कर सकती हैं – - यदि आपको चलने फिरने में अधिक तकलीफ हो रही है और बारंबार पेशाब जाना पड़ रहा है। - ऐसा इसलिए होता है क्यूंकि, प्रसव का समय नजदीक आते आते आपका शिशु श्रोणी में नीचे की तरफ आ जाता है। - योनि से अधिक स्राव होना जो की साफ या पीले म्यूकस युक्त हो। - ब्रक्स्टन हिक्स संकुचन होना। इसमें ऐसा लगता है की आपकी गर्भाशय की मांसपेशियां कसने लगी हैं या कड़ी होने लगी हैं। यदि आपको ऐसे कोई लक्षण हों तो तुरंत अपने स्त्री रोग विशेषज्ञ से मिलें।
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pregnancy me hemoglobin kitna hona chahiye

Dr. Pranati Narayan

22 Jan, 2025

Pregnancy Me Hemoglobin Kitna Hona Chahiye

गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को अपना विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता होती है, इस दौरान उनके हर तरह के क्रियाकलापों का एवम खान पान का सीधा प्रभाव उनके पेट में पल रहे बच्चे पर पड़ता है। गर्भावस्था के दौरान हीमोग्लोबिन स्तर में उतार-चढ़ाव की समस्या आम बात है, यह सामन्यतः हमारे खान पान पर निर्भर करता है, कुछ महिलाओं में इसका स्तर काफी हद तक कम हो जाता है, कुछ में सामान्य भी रहता है। **गर्भावस्था में हीमोग्लोबिन का सामान्य स्तर क्या होता है?** _गर्भावस्था में महिलाओं का हीमोग्लोबिन का स्तर 10.5 से 12DL_ तक होना चाहिए, यदि इससे कम होता है, तो आपके शरीर में पोषक तत्वों को कमी है, या फिर आपको एनीमिया भी हो सकता है। यदि ऐसा है, तो आपको डॉक्टर की सलाह लेने की आवश्यकता है, क्योंकि इस दौरान किसी भी प्रकार की लापरवाही आपके और आपके बच्चे के लिए बहुत हानिकारक सिद्ध हो सकती है। **गर्भावस्था के दौरान हीमोग्लोबिन की कमी क्यों हो जाती है?** डॉक्टर्स के अनुसार गर्भावस्था में खून में पानी की मात्रा बढ़ जाती है, जिसके खून पतला हो जाता है, और जैसे जैसे खून पतला होता जाता है, हीमोग्लोबिन की मात्रा घटती जाती है। ब्लड प्लाज्मा ने वृद्धि के कारण RBC ki हानि हीमोग्लोबिन की कमी का कारण है। **हीमोग्लोबिन की कमी के क्या क्या लक्षण होंगे–** हीमोग्लोबिन की कमी के कारण थकान, कमजोरी, चक्कर आना, एवम आंखों के नीचे, तथा होंठो का सफेद सा पद जाना आदि लक्षण है। **हीमोग्लोबिन की मात्रा को कैसे बढ़ाएं?** - हीमोग्लोबिन के मात्रा को बढ़ाने के लिए हमे जरूरी पोषक तत्वों से भरपूर आहार का सेवन करना चाहिए। - हरी पत्तेदार सब्जियों को खाना चाहिए ,जैसे–पलक, मेथी आदि। - आयरन से भरपूर आहार का सेवन करना चाहिए। - खजूर, एवम अंजीर के सेवन से भी आप हीमोग्लोबिन को बढ़ा सकते हैं। अगर आपके हीमोग्लोबिन का लेवल कम होता है तो आप अपने डॉक्टर से जरूर परमर्श करें।
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बच्चों में बुखार के लक्षण, कारण, घरेलू उपचार और भोजन

Dr. Pranati Narayan

30 Sep, 2023

बच्चों में बुखार के लक्षण, कारण, घरेलू उपचार और भोजन

बच्चे हर मां बाप की जान होते हैं ऐसे में यदि बच्चों को बुखार आ जाए तो मां बाप चिकत्सक के पास घबराए हुए दौड़े चले आते हैं। परंतु आपको बता दे बुखार एक रोग नहीं है यह एक परेशानी है जिसका मुख्य कारण जानकर उसका हल निकालना चाहिए। यदि छोटा बच्चा आपके घर में है तो आपको एक थर्मोमीटर अवश्य रखना चाहिए। जब बुखार आता है तो शरीर का तापमान **37. 5° C या 99.5 °F** से अधिक हो जाता है। **बच्चों को बुखार में होने वाले लक्षण** यदि बच्चा बुखार से पीड़ित होता है तो निम्न लक्षण मिलते है - - कपकपी आना - सिर, पेट दर्द - खांसी - नाक का बहना - भूख कम लगना - मिचली या उल्टी आना **बच्चों में बुखार आने का कारण** कई बार बुखार किस कारण से है ये नही पता चल पाता है परन्तु बुखार तभी होता है जब शरीर में कोई न कोई इन्फेक्शन हुआ हो। बुखार आने के कुछ कारण ये हो सकते हैं - - शिशुओ और बच्चों में कान का संक्रामण होना। - श्वासन पथ का संक्रमण होना। - गलतुंडिका में सूजन होना अर्थात टॉन्सिलाइटिस होना। - पेट या मूत्रमार्ग में संक्रमण होना। - मच्छर जनित रोग होना जैसे मलेरिया, डेंगू आदि। - अक्सर बच्चों के दांत निकलने पर भी बुखार आता है। **कैसे जानें कि शिशु को बुखार है?** यदि आपको अपने शिशु में उपर्युक्त कुछ लक्षण दिखते हैं या आपको ऐसा लग रहा है की आपके शिशु को ज्वार अर्थात बुखार हो सकता है तो आपको **थर्मामीटर** के द्वारा बुखार कितना है ये पता लगना चाहिए। बिना बुखार के **बस माथा चू लेने के कई बार बुखार होते हुए भी ज्ञात नही हो सकता**और यदि हो भी जाता है तो आप उसका सही माप नहीं जान सकते। इसलिए अपने शिशु का बुखार जानने हेतु थर्मामीटर का प्रयोग करना अनिवार्य है। **थर्मामीटर का इस्तेमाल कैसे करें?** थर्मामीटर भी बाजार में 2 प्रकार का उपल्ब्ध है– 1. मर्करी (पारा) थर्मामीटर 2. डिजिटल थर्मामीटर <u>डिजिटल थर्मामीटर प्रयोग करने की विधि</u> - सर्वप्रथम आपको डिजिटल थर्मामीटर का बटन दबाकर उसे ओन करना है। - इसके बाद यदि आपका बच्चा बहुत ही छोटा है तो थर्मोमीटर को अपने बच्चे की कांख (अर्थात बगल) में और यदि थोड़ा बड़ा (3 साल से ज्यादा उम्र) है तो उसके जीभ के निचले हिस्से में पीछे की तरफ स्थिर करना है। कांख में लगाने के बाद हाथ को नीचे करदे या अगर जीभ में लगा तो रहे तो बच्चे को अपने होठों को बंद करने को बोलें । - कुछ मिनटों में डिजिटल थर्मामीटर से एक बीप की आवाज आएगी तत्पश्चात थर्मामीटर को निकाल लें और उसपर आया हुआ तापमान लिख लें। - थर्मामीटर को तापमान लेने के बाद बिना धुले कभी भी न रखें। हमेशा पानी से धूल कर रखें। <u>मर्करी (पारा) थर्मामीटर प्रयोग करने की विधि</u> - सर्वप्रथम आपको थर्मामीटर पानी (ठंडा या सामान्य ताप) या साबुन से धो लेना है। - तापमान कम करने के लिए थर्मामीटर को हिलाएं। तापमान मापने के बाद ग्लास थर्मामीटर हमेशा खुद को रीसेट नहीं करते हैं। इसे सिरे से दूर अंत में पकड़ें और थर्मामीटर को आगे-पीछे घुमाएँ। यह सुनिश्चित करने के लिए जांचें कि यह कम से कम 96.8 डिग्री फ़ारेनहाइट (36.0 डिग्री सेल्सियस) से नीचे चला जाए। - इसके बाद यदि आपका बच्चा बहुत ही छोटा है तो थर्मोमीटर को अपने बच्चे की कांख (अर्थात बगल) में और यदि थोड़ा बड़ा (3 साल से ज्यादा उम्र) है तो उसके जीभ के निचले हिस्से में पीछे की तरफ स्थिर करना है। कांख में लगाने के बाद हाथ को नीचे करदे या अगर जीभ में लगा तो रहे तो बच्चे को अपने होठों को बंद करने को बोलें । - थर्मामीटर को 2-4 मिनट के लिए उसी स्थान पर छोड़ दें। - तापमान पढ़ने के लिए थर्मामीटर को क्षैतिज रूप (आड़ा/हॉरिजॉन्टल ) से पकड़ें। इसे आंखों के स्तर तक लाएं और तरल का सिरा ठीक आपके सामने हो। लंबी रेखाएँ देखें, जो प्रत्येक 1 °F (या 1 °C) दर्शाती हैं और छोटी रेखाएँ, जो प्रत्येक 0.2 °F (या 0.1 °C) दर्शाती हैं। तरल के अंत तक निकटतम संख्या पढ़ें, यदि आवश्यक हो तो छोटी रेखाओं को गिनें। **बुखार के दौरान बच्चे को क्या खिलाएं??** यदि आपका बच्चा केवल स्तन्य पान करता है तो बुखार आने पर भी उसको माँ का दुग्ध पिलाती रहे जबतक आप कोई गंभीर बीमारी से रोगग्रसित नहीं है। आमतौर पर बुखार आने पर लघु और सुपाच्य भोजन देना चाहिए। बुखार के समय चीज, पनीर, बाहर का खाना, फास्ट फूड, अधिक तैलीय पदार्थ आदि न दें। बेहतर रहेगा बुखार आने पर आप अपने बच्चे को घर का बना लघु खाना दें। बच्चों को बुखार के समय आप हरी सब्जियों, टमाटर और हरी सब्जियों से निर्मित सूप, खिचड़ी, दाल का पानी, गुनगुना दुग्ध, उबला आलू इत्यादि दे सकते हैं। **बुखार कम करने के कुछ घरेलू उपचार** यदि आप अपने शिशु का बुखार घर पर कम करना चाहते है तो उसके लिए कुछ घरेलू उपचार कर सकते है। – - नींबू और शहद को 1-1 बड़ा चम्मच ले और अच्छे से मिलाएं। फिर इसको बच्चे को खाने के लिए दे। - अपने बच्चे की मालिश सरसों के तेल और लहसुन से करें। परंतु यदि आपके शिशु को दाने है, चक्काते है तो इसका प्रगोग न करें। इसके अतिरिक्त कुछ बच्चो को लहसुन से अलर्जी भी हो सकती है। इसीलिए इसका प्रयोग सावधानी से करें। - यदि बुखार के कारण आपके बच्चे का शरीर, माथा अत्याधिक तप रहा है तो आप ठंडे सेक का माथे और गर्दन पर प्रयोग कर सकते हैं। - ध्यान रहें उपर्युक्त केवल उपाय है इलाज नहीं। बिना जाने समझे कोई भी घरेलू नुस्खा अपने बच्चो पर न आजमाए क्योंकि **कई बार घरेलु नुस्खे बीमारी को जटिल बना सकते हैं।** **बुखार आने पर अपने बच्चे में निम्न बिंदिओ का ध्यान रखें –** - पानी की कमी न होने दे। - ठंड से बचाएं - धुएं से दूर रखे - हल्के आरामदायक वस्त्र पहनाए - बुखार आने पर घर पर अपने बच्चे का बुखार थर्मोमीटर से लें। बच्चे के बुखार को माप कर एक जगह लिखते जाएं। ऐसा करने से आपको पता चलता रहेगा की आपके बच्चे का बुखार कितना काम हुआ है और चिकत्सक को भी दवाई कितनी असर कर रही है, बुखार आने का क्या कारण है ये जाने में सहायता मिलती है।
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pregnancy me anar khane ke fayde

Dr. Pranati Narayan

11 May, 2023

Pregnancy Me Anar Khane Ke Fayde

गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला को वो हर चीज खानी चाहिए जो पोषक तत्वों से भरपूर हों। इन पोषक चीजों में अनार भी आता है तो शरीर को हाइड्रेट करने के साथ और भी अन्य चीज़े उपलब्ध कराता है। **अनार के पोषक तत्व** अनार कैल्शियम, फोलेट, आयरन, प्रोटीन, पोटेशियम, विटामिन सी, एंटीऑक्सीडेंट के साथ साथ फाइबर से भी भरपूर होता है। **प्रेग्नेसी में अनार खाने के फायदे** प्रेग्नेसी में अनार निम्न सहायता करता है - - अनार रक्त को तो साफ करता ही है इसके अतिरिक्त वह यूरिनरी संक्रमण की समस्या को भी नहीं होने देता। - अनार रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत करता है। - अनार प्रेगनेंसी में होने वाली मलती और लगातार हो रही उल्टी को भी कम करता है। - कैल्शियम होने के कारण हड्डियों को मजबूती देता है। - फाइबर से भरपूर होने के कारण कब्ज नहीं होने देता एवं पाचन की अन्य समस्या जैसे एसिडिटी आदि को भी दूर करता है। - अनार विटामिन सी का अच्छा स्रोत होता है। विटामिन सी हमारे शरीर में आयरन को सोखने में सहायक होता है। और जब शरीर में उचित विटामिन सी और आयरन होता है तो इससे आयरन डिफिशिएंसी एनीमिया होने का खतरा भी कम हो जाता है। - इसमें उपस्थिति पोटेशियम गर्भावस्था में होने वाली पैरो की ऐंठन में भी राहत देता है। - प्रेगनेंसी में फोलेट अति आवश्यक होता है। यह भ्रुण के तंत्रिका तंत्र और न्यूरल ट्यूब का निर्माण करने से शिशु के मस्तिष्क का विकास सही तरीके से कराता है। प्रतिदिन एक गिलास अनार जा जूस फोलेट की आवश्यकता को 10 फीसदी तक पूरा करता है। **कितना अनार खाए?** हालाकि गर्भवति महिलाओं के लिए कोई मात्रा निर्धारित नहीं की गई है परंतु आपको एक व्यस्क की मात्रा से कुछ कम अनार का सेवन करना चाहिए। एक व्यस्क 56gm से 226gm तक की मात्रा में रोज अनार का सेवन कर सकता है। अनार को दिन में ही खाए रात में इसका सेवन न करें। **क्या अनार खाने का कोई नुकसान भी है?** अनार खाने से बहुत चिंताजनक नुकसान नहीं होते परंतु सावधानी से इसका सेवन करे। - अधिक मात्रा में सेवन करने से अनार आपका वजन बढ़ा सकता है क्यूंकि इस फल में अधिक कैलोरी होती है। - अनार का जूस कुछ दवाओं पर असर कर सकता है। अतः इसका सेवन करने से पहले डॉक्टर से राय लें। - अनार के अर्क का या सप्लीमेंट्स का सेवन गर्भावस्था में नही करना चाहिए। क्योंकि इसके ऊपर अभी कोई भी वैज्ञानिक खोज प्राप्त नहीं हुई है। - हर चीज बहुत अधिक मात्रा में हानिकारक हो सकती है चाहें वह कुछ भी हो। बहुत अधिक अनार का सेवन करने से आपके दातों का एनामेल भी खराब हो सकता है।
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Chemotherapy in Hindi: chemotherapy in Hindi meaning

Dr. Pranati Narayan

25 Jan, 2025

Chemotherapy In Hindi: Chemotherapy In Hindi Meaning

केमोथेरेपी, जिसे हिंदी में **"कीमोथेरेपी"** या "**कैंसर का कीमो**" कहा जाता है, एक चिकित्सीय उपचार विधि है जिसका उपयोग कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। यह उपचार विशेष रूप से कैंसर की कोशिकाओं को नष्ट करने या उनके विकास को रोकने के लिए काम करता है। **कीमोथेरेपी में दवाइयों का उपयोग किया जाता है**, इसे आमतौर पर **IV (इंट्रावीनस) के माध्यम से या मौखिक रूप** से दिया जा सकता है। यह कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने और उनके विकास को रोकने में एक शक्तिशाली उपकरण है, और यह मानवता के लिए अब तक के सबसे प्रभावी उपचारों में से एक माना जाता है। **Chemotherapy kya hota hai? (केमोथेरेपी क्या है?)** कीमोथेरेपी एक चिकित्सा उपचार है जिसमें विशेष दवाइयों का प्रयोग किया जाता है। यह दवाइयाँ शरीर में कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने, उनके विकास को रोकने या उन्हें फैलने से रोकने के लिए डिज़ाइन की जाती हैं। कीमोथेरेपी का उद्देश्य शरीर के स्वस्थ अंगों को कम से कम नुकसान पहुंचाते हुए कैंसर कोशिकाओं को मारना होता है। **कीमोथेरेपी का उपयोग कहाँ किया जाता है?** केमोथेरेपी का मुख्य उपयोग कैंसर के इलाज में किया जाता है। यह कैंसर के विभिन्न प्रकारों के लिए प्रभावी हो सकती है, जैसे: - स्तन कैंसर (Breast Cancer) - लंग कैंसर (Lung Cancer) - कोलोरेक्टल कैंसर (Colorectal Cancer) - ब्लड कैंसर (Leukemia) - लिंफोमा (Lymphoma) - ओवरी का कैंसर (Ovarian Cancer) इसके अलावा, कीमोथेरेपी का उपयोग कभी-कभी अन्य बीमारियों के उपचार में भी किया जा सकता है, जैसे कि कुछ प्रकार की रक्त की बीमारियाँ, जैसे ल्यूकेमिया और लिंफोमा। **Chemotherapy kaise hota hai? (केमोथेरेपी कैसे की जाती है?)** कीमोथेरेपी दवाइयाँ विभिन्न तरीकों से दी जा सकती हैं: _1. इंट्रावेनस (IV) तरीका_– इस तरीके में दवाइयाँ नसों में इंजेक्शन या ड्रिप के जरिए दी जाती हैं। यह सबसे सामान्य तरीका है। _2. दवाइयाँ ओरल (Mouth से)_ – कुछ दवाइयाँ टैबलेट या कैप्सूल के रूप में दी जाती हैं, जिन्हें मुँह से लिया जाता है। _3. इंजेक्शन के रूप में_ – कुछ दवाइयाँ शरीर में सीधे मांसपेशियों या अन्य स्थानों में इंजेक्ट की जाती हैं। _4. टॉपिकल (साधारण रूप से त्वचा पर)_ – कुछ मामलों में कीमोथेरेपी दवाइयाँ त्वचा पर लगाई जाती हैं, जैसे कि बाइल्स्किन कैंसर के इलाज में। **Chemotherapy kaise hota hai? (कीमोथेरेपी की प्रक्रिया)** कीमोथेरेपी की प्रक्रिया आमतौर पर एक योजना के तहत की जाती है। इसमें दवाइयों का कोर्स निर्धारित किया जाता है, जिसे "चक्र" या "साइकिल" कहा जाता है। एक चक्र में आमतौर पर कीमोथेरेपी की दवाइयाँ कुछ दिनों तक दी जाती हैं, और फिर शरीर को इलाज के प्रभावों से उबरने का समय दिया जाता है। इसके बाद अगला चक्र शुरू किया जाता है। हर चक्र में उपचार के बाद कुछ दिन आराम होता है, ताकि शरीर की कोशिकाएँ ठीक से काम कर सकें और स्वस्थ हो सकें। **Chemotherapy kitni baar de sakte hain? (कीमोथेरेपी का समय)** कीमोथेरेपी का समय और साइकिलें हर मरीज के लिए अलग-अलग हो सकती हैं। यह कैंसर के प्रकार, स्टेज, और मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है। सामान्यतः, एक कीमोथेरेपी साइकिल 2 से 4 सप्ताह तक होती है, और पूरा कोर्स 3 से 6 महीने तक चल सकता है। कुछ मामलों में यह समय और अधिक हो सकता है। डॉक्टर द्वारा इसको लेकर विशेष योजना बनाई जाती है। **chemotherapy ke side effects in hindi (कीमोथेरेपी के प्रभाव)** हालांकि कीमोथेरेपी के कुछ साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं, लेकिन आजकल की चिकित्सा तकनीक तेजी से विकसित हो रही है, और इन प्रभावों को नियंत्रित करना अब पहले से कहीं अधिक आसान है। इसलिए, कीमोथेरेपी से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह एक बेहद प्रभावी उपचार है, और आपको एक अनुभवी ऑन्कोलॉजिस्ट से परामर्श लेना चाहिए। साथ ही, [<u>BigOHealth ऐप</u>](https://play.google.com/store/apps/details?id=com.patients.bigohealth) से **सेकंड ओपिनियन** लेकर आप अपने इलाज को और अधिक आत्मविश्वास के साथ शुरू कर सकते हैं। चूँकि कीमोथेरेपी का मुख्य उद्देश्य कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करना है, और यह स्वस्थ कोशिकाओं को भी प्रभावित कर सकती है, इसलिए इसके कुछ सामान्य दुष्प्रभाव होते हैं। इनमें शामिल हैं: - वजन घटना और थकावट - बालों का झड़ना (Hair loss) - मतली और उल्टी - संक्रमण के खतरे में वृद्धि - मुँह और गले में घाव - त्वचा में सूजन और लालपन - पेट की परेशानी जैसे दस्त या कब्ज इन प्रभावों को कम करने के लिए डॉक्टर के द्वारा उपचार किया जाता है। कभी-कभी, दवाइयाँ या सप्लीमेंट्स दी जाती हैं, जो कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों को कम करने में मदद करती हैं। **क्या कीमोथेरेपी हमेशा प्रभावी होती है?** कीमोथेरेपी कैंसर के इलाज के लिए उपलब्ध **सबसे प्रभावी उपचार विकल्पों में से एक है** और इसे डॉक्टरों द्वारा कई सालों से सफलतापूर्वक उपयोग किया जा रहा है। हालांकि, हर व्यक्ति की प्रतिक्रिया अलग हो सकती है, लेकिन यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि कीमोथेरेपी कैंसर कोशिकाओं को मारने और ट्यूमर को सिकोड़ने में मदद करती है, जिससे इलाज के परिणामों में सुधार होता है। कीमोथेरेपी से डरने की कोई बात नहीं है। यह उपचार कैंसर के खिलाफ एक शक्तिशाली औजार है और इसे डॉक्टरों की देखरेख में सुरक्षित रूप से किया जाता है। अगर आपको कीमोथेरेपी की सलाह दी जाती है, तो यह आपके इलाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हो सकता है। **इससे डरने की बजाय, इसका सकारात्मक प्रभाव समझना ज़रूरी है**, क्योंकि यह कई मामलों में कैंसर से जंग जीतने में मदद करता है। अंततः, हर मरीज का इलाज व्यक्तिगत रूप से किया जाता है और डॉक्टर की सलाह के अनुसार यह सबसे अच्छा उपचार विकल्प हो सकता है।
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